Article 370
कागज के पन्नों में बटी हुई थी मेरे देश की यह ख्याति,
स्वर्ग (हिमालय) से बहती नदिया भी जिसके गुणगान थी गाती.
सैनिक रक्षण देकर भी पत्थर से जहाँ पिटा जाता था,
उस देश का ताज कश्मीर भी भारत में समाना चाहता था.
सियासतों के दलदल में लोगो को खिंचा जाता था,
अधर्म का पाठ पढ़ाकर हाथ में पत्थर थमाया जाता था.
बेरोजगार को पत्थर में रोटी की आस दिखाई जाती थी,
गुमराह उस बवंडर को कश्मीर की आजादी बताई जाती थी.
ना महिलाओं का सम्मान था, ना उद्योग,शिक्षा,रोजगार था,
पिछड़ी थी पुस्तोसे जमीन, भूखा दशकोसे लद्दाख था.
अब होगा एक नया आगाज तिरंगा जो अपनाया हैं,
शिक्षित,समृद्ध कश्मीर के लिए पहला कदम बढ़ाया हैं.
शिक्षा और रोजगार से ही कोई राज्य खुशहाल होता हैं,
प्रगति से आगे बढ़ता हैं विकास जहाँ भारत का संविधान होता हैं.
मानो इसके प्रावधानों को तो इंसान में ही धरम नजर आता हैं,
धिक्कारो संविधान को तो इंसान जात-धरम में बट जाता हैं.
- ©केतन रमेश झनके
Indian flag |
70वर्ष से पिछड़ा रहा जम्मू-कश्मीर अब जाकर प्रगति पथ पर सवार होगा. कहने को तो कश्मीर भारत का हिस्सा था पर वहाँ भारतीय संविधान लागू नही था. कोई बाहरी व्यक्ति कश्मीर में काम नही कर सकता था, वहाँ जमीन नही खरीद सकता था, कश्मीरी नागरिक से शादी नही कर सकता था. स्वर्ग सा दिखने वाला यह राज्य बेरोजगारी, स्वास्थ्य और शिक्षा से 70 वर्ष से जुज़ रहा था. रोजगार न होने के कारण बेरोजगार भटका हुआ युवक बड़ी आसानी से आतंकवाद का शिकार हो जाता था. भारतीय सैनिकों को इसी के चलते काफी हिंसक परिस्थितियों का सामना करना पड़ा हैं. जिनकी रक्षा करने आप कदम बढ़ाते हो वही पत्थर मारे तो कैसा होगा.
कई वर्षों से सत्ता में रहे कुछ मुट्ठी भर परिवार ही आजतक वहाँ उद्योग चलाते थे. उनकी मनमानी और सत्ता के भूक की वजह से लद्दाख को इतने वर्षों में अनदेखा किया गया था. जगजीवन के लिए पूरी तरह जम्मू-कश्मीर पर निर्भर रहने वाला लद्दाख कश्मीर की थोपी हुई नीतियों का शिकार था. आर्टिकल 370 और 35 A को हटाने की वजह से अब रोजगार के साधन खुल गए हैं. लद्दाख को केन्द्रशाषित प्रदेश का दर्जा देकर अब लद्दाख भारत की प्रगति में अपना योगदान दे पाएगा. असंभव लगने वाले इस निर्णय को साक्षात रूप देकर मोदी सरकार ने भारत की एकात्मता को सही माईने में प्रमाण दिया हैं.
१५ऑगस्ट १९४७ को भारत की तरह जम्मू और कश्मीर भी अंग्रेजी सरकार से आज़ाद हो गया. भारत से अलग होकर पाकिस्तान भी एक स्वतंत्र देश बन चुका था. स्वतंत्र पाक सेना ने २०अक्टूबर १९४८ में जम्मू और कश्मीर पर हमला किया और बहोतसा हिस्सा काबिज कर लिया. जम्मू और कश्मीर के महाराज हरिसिंग ने शेख अब्दुल्ला की शिफारिश से भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू इनसे मदत मांगी. भारत की मदत होनेसे पाकसेना पिछे हट गई और युद्ध थम गया. २६ अक्टूबर १९४७ को महाराजा हरिसिंग ने भारत के साथ जम्मू और कश्मीर के अस्थायी विलय की घोषणा की. विलय के साथ ही कुछ शर्तें लागू की गई जिसमें साफतौर पर यह ध्यान रखा गया की जबतक जम्मू और कश्मीर की जनता खुद भारत को अपना न ले कोई संविधानिक जबरदस्ती जम्मू और कश्मीरपर लागू न की जाए. जबतक जम्मू और कश्मीर अपना खुद का संविधान न बनाले तबतक प्राथमिक सहकार्य यह भारत करेगा. इसी आस्वासन के साथ अनुच्छेद ३७० को १७नवंबर १९५२ में भारत के संविधान में लाया गया.
अनुच्छेद ३७० के अनुसार जम्मू और कश्मीर के संविधान में किसी प्रकार का संशोधन भारत द्वारा लागू नही किया जा सकता है. जम्मू-कश्मीर की संसद में यदि मान्य हो और राष्ट्रपति की अनुमति को तभी यह कर पाना मुमकिन है. जम्मू-कश्मीर यह भारतीय संघ का एक संवैधानिक राज्य है जिसका नाम, क्षेत्रफल और सिमा को केंद्र सरकार, राज्य सरकार के अनुमति बिना नही बदल सकती. रक्षा, विदेश और दूरसंचार को छोड़कर सभी मामलो में कानून बनाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार की अनुमति लेनी होती है. जम्मू-कश्मीर का अपना संविधान है, इसका प्रशासन भारत के संविधान नुसार नही चलता. जम्मू-कश्मीर के दो ध्वज है एक राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा और एक राज्य का अपना अलग ध्वज. जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान करना जैसे की राष्ट्रगान, राष्ट्र ध्वज का अपमान यह अपराध श्रेणी में नही आता. केंद्र में लागू की गई कोई भी आर्थिक अपातकाल स्तिथि का जम्मू-कश्मीर से कोई ताल्लुक नही है. जम्मू-कश्मीर के नागरिक को दो नागरिकताए बहाल की जाती है एक भारत का नागरिक और एक जम्मू-कश्मीर का. नागरिकता कानून को लेकर एक बड़ी ही अजब बात जम्मू-कश्मीर में लागू थी. यदि कोई कश्मीरी महिला किसी भारतीय पुरुष से विवाह करती है तो उसकी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता रद्द हो जाती है. यही अगर कोई कश्मीरी महिला पाकिस्तानी पुरुषसे शादी करती है तो उसकी नागरिकता कायम रहती है और उस व्यक्ति को भारतकी नागरिकता भी मिल जाती है.
किन हालातो में हमारे संविधान में इन सभी बातों को स्वीकारा गया था ये तो बिता वक़्त ही जाने लेकिन वर्तमान स्तिथि में अनुच्छेद ३७० को संविधान से निकाला जाना जरूरी था. संविधान की सीमाएं जहा लग जाए वहाँ प्रगति अपनेआप होती है. इसी कारण शायद भविष्य में होने वाले अनुच्छेद ३७० के दुर्योपयोग की कल्पना उसे लिखने वाले को पहले ही ज्ञात थी. इस अभूतपूर्व रचना के मुख्य शिलेदार डॉ. भीमराव अंबेडकर को हम सभी भारतीय सलाम करते है.
आइए जानते है क्या है अनुच्छेद ३७० का कहना :
१५ऑगस्ट १९४७ को भारत की तरह जम्मू और कश्मीर भी अंग्रेजी सरकार से आज़ाद हो गया. भारत से अलग होकर पाकिस्तान भी एक स्वतंत्र देश बन चुका था. स्वतंत्र पाक सेना ने २०अक्टूबर १९४८ में जम्मू और कश्मीर पर हमला किया और बहोतसा हिस्सा काबिज कर लिया. जम्मू और कश्मीर के महाराज हरिसिंग ने शेख अब्दुल्ला की शिफारिश से भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू इनसे मदत मांगी. भारत की मदत होनेसे पाकसेना पिछे हट गई और युद्ध थम गया. २६ अक्टूबर १९४७ को महाराजा हरिसिंग ने भारत के साथ जम्मू और कश्मीर के अस्थायी विलय की घोषणा की. विलय के साथ ही कुछ शर्तें लागू की गई जिसमें साफतौर पर यह ध्यान रखा गया की जबतक जम्मू और कश्मीर की जनता खुद भारत को अपना न ले कोई संविधानिक जबरदस्ती जम्मू और कश्मीरपर लागू न की जाए. जबतक जम्मू और कश्मीर अपना खुद का संविधान न बनाले तबतक प्राथमिक सहकार्य यह भारत करेगा. इसी आस्वासन के साथ अनुच्छेद ३७० को १७नवंबर १९५२ में भारत के संविधान में लाया गया.
अनुच्छेद ३७० के अनुसार जम्मू और कश्मीर के संविधान में किसी प्रकार का संशोधन भारत द्वारा लागू नही किया जा सकता है. जम्मू-कश्मीर की संसद में यदि मान्य हो और राष्ट्रपति की अनुमति को तभी यह कर पाना मुमकिन है. जम्मू-कश्मीर यह भारतीय संघ का एक संवैधानिक राज्य है जिसका नाम, क्षेत्रफल और सिमा को केंद्र सरकार, राज्य सरकार के अनुमति बिना नही बदल सकती. रक्षा, विदेश और दूरसंचार को छोड़कर सभी मामलो में कानून बनाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार की अनुमति लेनी होती है. जम्मू-कश्मीर का अपना संविधान है, इसका प्रशासन भारत के संविधान नुसार नही चलता. जम्मू-कश्मीर के दो ध्वज है एक राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा और एक राज्य का अपना अलग ध्वज. जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान करना जैसे की राष्ट्रगान, राष्ट्र ध्वज का अपमान यह अपराध श्रेणी में नही आता. केंद्र में लागू की गई कोई भी आर्थिक अपातकाल स्तिथि का जम्मू-कश्मीर से कोई ताल्लुक नही है. जम्मू-कश्मीर के नागरिक को दो नागरिकताए बहाल की जाती है एक भारत का नागरिक और एक जम्मू-कश्मीर का. नागरिकता कानून को लेकर एक बड़ी ही अजब बात जम्मू-कश्मीर में लागू थी. यदि कोई कश्मीरी महिला किसी भारतीय पुरुष से विवाह करती है तो उसकी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता रद्द हो जाती है. यही अगर कोई कश्मीरी महिला पाकिस्तानी पुरुषसे शादी करती है तो उसकी नागरिकता कायम रहती है और उस व्यक्ति को भारतकी नागरिकता भी मिल जाती है.
किन हालातो में हमारे संविधान में इन सभी बातों को स्वीकारा गया था ये तो बिता वक़्त ही जाने लेकिन वर्तमान स्तिथि में अनुच्छेद ३७० को संविधान से निकाला जाना जरूरी था. संविधान की सीमाएं जहा लग जाए वहाँ प्रगति अपनेआप होती है. इसी कारण शायद भविष्य में होने वाले अनुच्छेद ३७० के दुर्योपयोग की कल्पना उसे लिखने वाले को पहले ही ज्ञात थी. इस अभूतपूर्व रचना के मुख्य शिलेदार डॉ. भीमराव अंबेडकर को हम सभी भारतीय सलाम करते है.