" बलात्कार "
हमदर्दी नही इंसाफ चाहिए,बेटियो के लिए सुरक्षित सम्मान चाहिए.
कबतक दरिंदो के हवस से जले कोई आसिफा, निर्भया या प्रियंका,
बलात्कारियो को जेल नही सजा सरेआम चाहिए.
जिंदा जलादो उन हैवानो को तड़प जरा उन्हें भी महसूस हो,
काटकर फेकदो उनकी मर्दानगी बेबसी जरा उन्हें भी मालूम हो.
कानून ना कर सके तो ये हमे ही करना होगा,
हाथ मे मोमबत्ती नही हथियार अब लेना होगा.
कानून के हाथ लंबे है तो फिर सजा में इतनी देरी क्यों,
न्याय का मंदिर भी न्याय न दे सके ऐसी मजबूरी क्यों.
हादसे दोहराए जाते है पर इंसाफ नही मिलता,
बस नाम और जगह बदल जाती है ये अधर्म नही थमता.
एड़िया घिस जाती है कोर्ट के चक्कर लगाते,
उमर बीत जाती है केस की सुनवाई सुनाते.
सख्त न हो कानून तबतक कोई डर न रहेगा,
सुरक्षित न होगी बेटिया न ये जुल्म रुकेगा.
फरियाद हमारी कोई सरकार नही सुनेगी,
फिर बलात्कारियो के धर्म पर बस राजनीति ही होगी.
मंदिर-मस्जिद के लिए हम आपस मे लढ़ जाते है,
जबतक लढ़े न सरकार से सख्त कानून के लिए.... बलात्कार की ये आंधी शायद ना थमेगी.
- ©केतन रमेश झनके
आए दिन बलात्कार की घटनाएं बढ़ रही है, बढ़ रही है साथ ही उसकी क्रूरता. भारत मे हर १५मिनट में किसी लड़की से दुष्कर्म होता है. जिसकी शिकायत शायद दर्ज भी न होती हो. कही बदनामी के डर से कही प्रशाशन की लापरवाही से जुल्म होकर भी उसकी शिकायत नही हो पाती. इन घटनाओं को रोका कैसे जाए या इसपर महिलाओं को सुरक्षा कैसे प्रदान की जाए ?? ये बस सरकार की नही तो हमारी भी जिम्मेदारी बनती है. सरकार कांग्रेस की हो या भाजपा की अपनी नाकामी के लिए ये बस एक-दूजे को दोषी ठहराएंगे. निर्भया केस के बाद सरकार ने कुछ २हजार करोड़ की निधि महिलाओ के सुरक्षा हेति जारी की थी. जिसमे से केवल ९ फीसदी ही उपयोग में लाई गई. कौन पूछेगा इनसे सवाल ?? कहा गया इतना पैसा ?? इतनी निधि जाहिर होने के बाद भी ना तो महिलाओ में डर कम हुआ ना तो निधि का उपयोग.
बात जब आस्था की हो तो हर उम्र का व्यक्ति चाहे वो गरीब हो या अमिर एक जुट हो जाते है. बात जब सरकार से आरक्षण की हो, किसी कानून के अपक्ष में हो लोग रास्तो पे उतर आते है. लेकिन जब बात महिलाओ के सुरक्षा की हो क्यों वही जज्बात आम नागरिकों में नही दिखता. महिलाओ के लिए रहने हेति असुरक्षित देशो की यादि में भारत १३३वे क्रमांक पे है. विदेशी महिलाओ से बतसलूखि और छेड़छाड़ के मामले इतने बढ़ चुके है की महिला पर्यटक यहाँ आने से कतराने लगे है. सरकार द्वारा बात तो की जाती है महिला सुरक्षा के लिए लेकिन फिर क्यों बलात्कार कम नही होते, क्यों डर नही है बलात्कारियो में ?? हैवानियत के इस क्रूर कृत्य को अंजाम देने से पहले क्यों किसी कानून का खयाल नही आता. उत्तर साफ है फाँसी की सज़ा तो तय होती है पर फांसी नही होती. ७ साल की सज़ा लेकर वही अपराधी फिर नया अपराध करता है. इसीलिए शायद हैदराबाद सामूहिक बलात्कार और हत्या केस के आरोपियों के किए हुए एनकाउंटर का हर भारतीय ने स्वागत किया. हर कोई चाहता है की बलात्कारियो को ऐसी सज़ा मिले जिसे देख फिर कोई दुष्कर्म करनेसे पहले १०० बार सोचे.
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